अनजानी राह
ढल रहा है चाँद भी... सुबह होने को है
पाया है मैंने क्या.. डर जो खोने को है
मैं निकल पड़ा हूँ अपनी ही धुन में
होगा तो बस वही .. जो होने को है।
गम किसका मुझे, किसका अफसोस है
ये जो कांटा लगा, इसका क्या दोष है
इन अनजानी राहों में अनजाना सफर
कहीं लावे सी गर्मी, कहीं सुकूँ की ओस है।
ये रास्ते, मेरे लिए अजनबी जो हैं
मंजिल पाने के लिए जरूरी हैं
कर लूं इन कांटों से दोस्ती थोड़ी
इनको भी जरा सहलाना, जरूरी है।
अनजाना रास्ता ये, अब अनजाना न रहा है
मैं जितना चल रहा हूँ, मुझसे जुड़ता गया है
सिखाते गया है मुझे अपनी उतार-चढ़ावो से
मोड़ दे जिधर भी कोई इसे, बस मुड़ता गया है।
सफर है अभी बहुत, बस चलता जा रहा हूँ
खाली हाथ लिए, हाथ मलता जा रहा हूँ
मंजिल न सही, रास्ता मिला तो सही
इस अनजानी राह की बाहों में, गिरकर सम्भलता जा रहा हूँ।
ढल रहा है चाँद भी... सुबह होने को है
पाया है मैंने क्या.. डर जो खोने को है
मैं निकल पड़ा हूँ अपनी ही धुन में
होगा तो बस वही .. जो होने को है।
#MJ
#प्रतियोगिता
मनोज कुमार "MJ"
Swati chourasia
30-Jun-2021 08:45 AM
Very nice 👌👌
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Ravi Goyal
30-Jun-2021 08:32 AM
Bahut khoob 👌👌
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Swati Charan Pahari
29-Jun-2021 07:16 PM
बेहतरीन
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